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Haasya-Sparsh

Updated: Oct 17, 2022

हास्य-स्पर्श


किसी भूत-क्षणों, के स्मृति-समावेश, में इस स्वत्वचा पर, स्पर्शावली का, विचक्षण प्रभाव पड़ा, कि वह चिराश्रु-स्त्रोत्र, ने उन स्वस्निग्ध-पीड़ित, अंगों की थकावट, का विस्मरण किया, क्योंकि निहित थी, उस अनुभूति में, सुख-रसांजली, जिससे बूंद-बूंद, पतित होते हुए, उस मिष्ठ रस को, स्पृश्य करते हुए, किसी नव-क्षण, की अनुभूति को, सजीव-सा स्निग्ध करने में, सफल हो सके।



अनिवार्य थी, यह प्रणाली, किसी व्यथावश, उत्पन्न हुई, सुख-तृष्णा की पूर्ति हेतु, पूर्व में ही, सहसा अवगत हुई, चिंता-वर्ण युक्त, एक वृथा चलचित्र, जिसका स्त्रोत, वह स्वमन था, व अंशावाली, स्वप्नांशों की थी, जिसके अंतु हेतु, थी अनिवार्य, यह अनुभूति !



उसी कृत्य-चिन्ह से, सुशोभित हुआ, वह विषाद-युक्त, उपेक्षित मन-वर्णों से पूर्ण, व आशा से विरक्त चित्र, जो प्रत्य-क्षण, शक्ति बनकर, निर्मित हुआ, वह यथार्थ- अनुभवों, से युक्त, व उन्नत कर्मधारों, से संचालित, एक विचक्षण विन्यास, जिसका प्रथम-पाषाण, स्थायी हुआ, उस सर्व-सुख महास्त्रोत उस पूर्व में अवगत, हास्य स्पर्श से



- अभिवर्धन


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